NIOS Class 10th Flock Art (211): NIOS TMA Solution

NIOS Solved TMA 2024

टिप्पणी :

(i) सभी प्रश्न अनिवार्य हैं। प्रत्येक प्रश्न के लिए आवंटित अंक प्रश्नों के साथ दिए गए हैं।'

(ii) उत्तर पुस्तिका के पहले पृष्ठ पर अपना नाम, नामांकन संख्या, एआई नाम और विषय लिखें।

 


1. निम्नलिखित में से किसी एक प्रश्न का उत्तर लगभग 40-60 शब्दों में दीजिए।

(a)  'लोक कलाकार स्थानीय स्तर पर उपलब्ध सामग्री का उपयोग करते हैं।' इस कथन का औचित्य सिद्ध कीजिए करें।

उत्तर - लोक कलाकार अक्सर ऐसे समुदायों में रहते हैं, जहां महंगी सामग्री तक सीमित पहुंच होती है। स्थानीय स्तर पर उपलब्ध सामग्री, जैसे मिट्टी, लकड़ी, पत्ते आदि का उपयोग करके वे न केवल कला बनाते हैं, बल्कि अपने पर्यावरण से अपने गहन संबंध को भी प्रदर्शित करते हैं।

स्थानीय स्तर पर उपलब्ध सामग्री का उपयोग करने के निम्नलिखित कारण हैं:

·         आर्थिक कारण: लोक कलाकारों के पास अक्सर महंगी सामग्री खरीदने के लिए पर्याप्त धन नहीं होता है।

·         भौगोलिक कारण: लोक कलाकारों के स्थानीय क्षेत्र में अक्सर ऐसी सामग्री उपलब्ध होती है, जो उनके लिए उपयोगी होती है।

·         सांस्कृतिक कारण: स्थानीय सामग्री का उपयोग करके लोक कलाकार अपने संस्कृति और परंपराओं से जुड़े रहते हैं।

 

(b) ऐसा क्यों कहा जाता है कि स्थानीय लोककला और जनजातीय कलाओं का निर्माण धार्मिक अनुष्ठान और उपयोगितावादी उद्देश्य के लिए किया जाता है? उल्लेख कीजिए।

उत्तर - स्थानीय लोककला और जनजातीय कलाएं अक्सर पारंपरिक अनुष्ठानों और दैनिक जरूरतों से जुड़ी होती हैं। इनका निर्माण धार्मिक अनुष्ठान और उपयोगितावादी उद्देश्यों को पूरा करने के लिए किया जाता है।

धार्मिक अनुष्ठान: स्थानीय लोककला और जनजातीय कलाओं का उपयोग अक्सर धार्मिक अनुष्ठानों में किया जाता है। उदाहरण के लिए, मूर्तियों, मुखौटों, और तालियों का उपयोग पूजा-अर्चना में किया जाता है।

उपयोगितावादी उद्देश्य: स्थानीय लोककला और जनजातीय कलाओं का उपयोग अक्सर दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए, मिट्टी के बर्तन का उपयोग भोजन और पानी के भंडारण के लिए किया जाता है। कपड़े का उपयोग पहनने के लिए किया जाता है।

उदाहरण:

·         नवरात्रि के त्योहार पर देवी दुर्गा के मुखौटों का उपयोग किया जाता है।

·         केरल के आदिवासियों द्वारा बनाई गई पत्थर की मूर्तियों का उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों में किया जाता है।

·         उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में बनाई गई हाथ से बुनी गई साड़ियों को पहनने के लिए उपयोग किया जाता है।

इस प्रकार, स्थानीय लोककला और जनजातीय कलाएं केवल सुंदर कलाकृतियां ही नहीं हैं, बल्कि ये हमारे समाज और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये हमारे धार्मिक विश्वासों, परंपराओं, और दैनिक जीवन को दर्शाती हैं।

 

2. निम्नलिखित प्रश्नों में से किसी एक प्रश्न का उत्तर लगभग 40-60 शब्दो में दीजिए।

 (a) कलमकारी लोक कला में शुभ प्रतीक के रूप में उपयोग किए जाने वाले मोटिफ का नाम लिखिए और वर्णन कीजिए।

उत्तर कलमकारी लोक कला में शुभ प्रतीक के रूप में उपयोग किए जाने वाले मोटिफ का नाम कमल है। कमल को भारतीय संस्कृति में पवित्र और शुभ माना जाता है। यह ज्ञान, प्रकाश, और मोक्ष का प्रतीक है। कलमकारी चित्रों में कमल को अक्सर एक फूल या पौधे के रूप में चित्रित किया जाता है। इसे कभी-कभी एक देवी या देवता के वाहन के रूप में भी दिखाया जाता है।

 

b) लटपटिया सुआ मोटिफ के बारे में आप क्या जानते हैं? यह मोटिफ किस राज्य में लोकप्रिय है?

उत्तर लटपटिया सुआ एक लोकप्रिय मोटिफ है जो बिहार, झारखंड, और पश्चिम बंगाल के ग्रामीण क्षेत्रों में पाया जाता है। यह एक सुंदर और आकर्षक मोटिफ है जो अक्सर रंगीन कपड़ों, घरेलू सामान, और अन्य वस्तुओं पर उकेरा जाता है।

लटपटिया सुआ एक सुअर का चित्र है जो अपने पूँछ को लहराते हुए चल रहा है। इस मोटिफ को अक्सर समृद्धि, सुख-समृद्धि, और खुशहाली का प्रतीक माना जाता है।

 

3. निम्नलिखित प्रश्नों में से किसी एक प्रश्न का उत्तर लगभग 40-60 शब्दों में दीजिए।

(a) धारी उड़िया पट्टा का अर्थ क्या है? धारी के विभिन्न प्रकारों के बारे में लिखिए।

उत्तर धारी उड़िया पट्टा का अर्थ है "धारीदार पट्टी"। यह एक लोकप्रिय उड़िया साड़ी है जो अपनी सुंदर और जटिल डिजाइनों के लिए प्रसिद्ध है। धारी के विभिन्न प्रकारों में शामिल हैं:

·         बांधनी धारी: इस प्रकार की धारी में रंगीन धागों से बांधनी तकनीक का उपयोग किया जाता है।

·         कढ़ाई धारी: इस प्रकार की धारी में हाथ से कढ़ाई की जाती है।

·         छपाई धारी: इस प्रकार की धारी में मुद्रण तकनीक का उपयोग किया जाता है।

धारी उड़िया पट्टा आमतौर पर शादी समारोहों और अन्य विशेष अवसरों के लिए पहनी जाती है।

 

(b) किस लोक चित्रकला में पैठन और पिंगुली के ग्रामीणों को कहानियाँ सुनाई जाती हैं? इस कला के बारे में संक्षेप में उल्लेख कीजिए।

उत्तर पैठन और पिंगुली के ग्रामीणों की कहानियाँ सुनाई जाने वाली लोक चित्रकला का नाम वारली पेंटिंग है। यह एक प्राचीन चित्रकला शैली है जो लगभग 7,000 साल पुरानी है। वारली पेंटिंग आमतौर पर भित्ति चित्रों के रूप में बनाई जाती हैं। इन चित्रों में अक्सर ग्रामीण जीवन, पौराणिक कथाएँ, और धार्मिक विषयों को चित्रित किया जाता है।

वारली पेंटिंग में उपयोग किए जाने वाले मोटिफ सरल और ज्यामितीय होते हैं। इन चित्रों को आमतौर पर सफेद या भूरे रंग के आधार पर बनाए जाते हैं। वारली पेंटिंग एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक विरासत है जो पैठन और पिंगुली के ग्रामीणों के जीवन और विश्वासों को दर्शाती है।

4. निम्नलिखित प्रश्नों में से किसी एक प्रश्न का उत्तर लगभग 100-150 शब्दो में दीजिए।

(a) कपड़े पर की जाने वाली कला का स्थानीय भाषा में नाम लिखिए। इनमें से किसी एक कला के बारे में संक्षिप्त वर्णन कीजिए।

उत्तर कपड़े पर की जाने वाली कला का स्थानीय भाषा में नाम 'चोली' या 'चोली पेंटिंग' है। यह कला मुख्य रूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र में प्रचलित है। इस कला में कपड़े पर चित्र बनाने के लिए प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाता है। चित्रों के विषय प्रायः धार्मिक, पौराणिक, या सामाजिक होते हैं।

चोली पेंटिंग की एक प्रसिद्ध शैली है 'फड़ चित्रकला'। यह चित्रकला राजस्थान में प्रचलित है। फड़ चित्रों में प्रायः लोक देवताओं, वीर पुरुषों, या धार्मिक कथाओं का चित्रण होता है। फड़ चित्र लंबे कपड़े पर बनाए जाते हैं।

 

(b) लोक कला के क्षेत्र में संभावित क्षेत्रों के बारे में लिखिए। दिल्ली में लोक कला को प्रोत्साहित करने के लिए किस प्रकार दिल्ली हाट की स्थापना की गई वर्णन कीजिए।

उत्तर लोक कला के क्षेत्र में निम्नलिखित संभावित क्षेत्र हैं:

·         साहित्य: लोकगीत, लोककथाएँ, लोक नाटक, लोक नृत्य, आदि।

·         कला: चित्रकला, मूर्तिकला, धातु शिल्प, वस्त्र कला, आदि।

·         संगीत: लोक संगीत, लोक वाद्ययंत्र, आदि।

·         नृत्य: लोक नृत्य, आदि।

दिल्ली में लोक कला को प्रोत्साहित करने के लिए दिल्ली हाट की स्थापना की गई है। दिल्ली हाट में विभिन्न राज्यों के लोक कलाकारों को अपने सामान बेचने का अवसर दिया जाता है। दिल्ली हाट में लोक कला के विभिन्न रूपों, जैसे चित्रकला, मूर्तिकला, धातु शिल्प, वस्त्र कला, आदि को प्रदर्शित किया जाता है।

दिल्ली हाट की स्थापना से लोक कला को बढ़ावा मिला है। दिल्ली हाट में लोक कला से जुड़े कलाकारों को अपने हुनर को दिखाने का मौका मिलता है। इससे लोक कला को नई पहचान मिल रही है।

 

5. निम्नलिखित प्रश्नों में से किसी एक प्रश्न का उत्तर लगभग 100-150 शब्दो में दीजिए।

(a) 'पोथी को परिवार का खजाना गया जाता है।' इस कथन का औचित्य सिद्ध कीजिए।

उत्तर पोथी को परिवार का खजाना इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह ज्ञान का भंडार है। पोथी में ज्ञान, कला, साहित्य, इतिहास, धर्म, आदि सभी विषयों का समावेश होता है। पोथी से हमें अपने समाज और संस्कृति के बारे में जानने को मिलता है।

पोथी हमारे परिवार की धरोहर होती है। यह हमें हमारे पूर्वजों की विरासत से जोड़ती है। पोथी से हमें प्रेरणा मिलती है और हम अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित होते हैं।

 

(b) गोंड चित्रकला के विषय के बारे में लिखिए। इस चित्रकला में किस प्रकार की सामग्री का उपयोग किया जाता है विस्तार से लिखें।

उत्तर गोंड चित्रकला के विषय मुख्य रूप से पौराणिकधार्मिकसामाजिक, और प्रकृति से संबंधित होते हैं। इन चित्रों में प्रायः देवताओं, देवी-देवताओं, धार्मिक कथाओं, लोक देवताओं, पशु-पक्षियों, फूल-पौधों, आदि का चित्रण होता है।

गोंड चित्रकला में विभिन्न प्रकार की सामग्री का उपयोग किया जाता है। इनमें प्राकृतिक रंग, जैसे हल्दीमेहंदीचूनाकत्थापपीता, आदि का उपयोग किया जाता है। इन रंगों को पानी में मिलाकर चित्र बनाए जाते हैं। इसके अलावा, चित्र बनाने के लिए लकड़ी के ब्रश या हाथ का उपयोग किया जाता है।

गोंड चित्रकला एक समृद्ध और प्राचीन कला है। यह कला गोंड जनजाति की संस्कृति और परंपराओं को दर्शाती है। इस कला को संरक्षित करने के लिए सरकार द्वारा विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं।

 

6. नीचे दी गई परियोजनाओं में से कोई एक परियोजना तैयार कीजिए।

(a) मधुबनी पेंटिंग में इस्तेमाल किए गए 10 परंपरागत मोटिफ के चित्र बनाइए और चित्रों के साथ प्रत्येक मोटिफ पर एक अनुच्छेद लिखिए।

उत्तर मधुबनी पेंटिंग एक लोकप्रिय भारतीय चित्रकला शैली है जो बिहार के मधुबनी जिले में उत्पन्न हुई थी। इस चित्रकला में चमकीले रंगों और ज्यामितीय आकृतियों का उपयोग किया जाता है। मधुबनी पेंटिंग में इस्तेमाल किए जाने वाले कुछ पारंपरिक मोटिफ निम्नलिखित हैं:

1. पुष्प मोटिफ


मधुबनी पेंटिंग में पुष्प मोटिफ सबसे आम मोटिफ हैं। इनमें गुलाब, कमल, चंपा, और मौलसरी जैसे फूलों का चित्रण किया जाता है। इन फूलों को अक्सर कलात्मक रूप से सजाया जाता है।

2. पशु-पक्षी मोटिफ


मधुबनी पेंटिंग में पशु-पक्षी मोटिफ भी लोकप्रिय हैं। इनमें मोर, तोता, हिरण, और हाथी जैसे पशुओं और पक्षियों का चित्रण किया जाता है। इन पशु-पक्षियों को अक्सर जीवंत रंगों में चित्रित किया जाता है।

3. ज्यामितीय आकृतियाँ


मधुबनी पेंटिंग में ज्यामितीय आकृतियों का भी व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। इनमें त्रिभुज, वर्ग, और वृत्त जैसी आकृतियों का उपयोग किया जाता है। इन आकृतियों को अक्सर पारंपरिक डिजाइनों में बनाया जाता है।

4. मानव आकृति


 

मधुबनी पेंटिंग में मानव आकृतियाँ भी कभी-कभी चित्रित की जाती हैं। इनमें देवी-देवताओं, राजाओं, और अन्य ऐतिहासिक या पौराणिक व्यक्तियों का चित्रण किया जाता है। इन मानव आकृतियों को अक्सर पारंपरिक पोशाकों और आभूषणों में चित्रित किया जाता है।

5. धार्मिक प्रतीक



मधुबनी पेंटिंग में धार्मिक प्रतीक भी अक्सर चित्रित किए जाते हैं। इनमें सूर्य, चंद्रमा, तारे, और अन्य धार्मिक प्रतीकों का उपयोग किया जाता है। इन धार्मिक प्रतीकों को अक्सर शुभता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।

6. ज्यामितीय डिजाइन


मधुबनी पेंटिंग में ज्यामितीय डिजाइन भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन डिजाइनों को अक्सर फ्रेम, पृष्ठभूमि, या अन्य सजावटी तत्वों के रूप में उपयोग किया जाता है।

7. रंगों का उपयोग


मधुबनी पेंटिंग में चमकीले रंगों का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। इन रंगों को अक्सर एक साथ मिलाकर जीवंत और आकर्षक डिजाइन बनाए जाते हैं।

8. पारंपरिक पैटर्न


मधुबनी पेंटिंग में पारंपरिक पैटर्न भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन पैटर्नों को अक्सर पृष्ठभूमि, फ्रेम, या अन्य सजावटी तत्वों के रूप में उपयोग किया जाता है।

9. लकड़ी की छड़ी का उपयोग


मधुबनी पेंटिंग में लकड़ी की छड़ी का उपयोग चित्र बनाने के लिए किया जाता है। इस छड़ी को पानी में भिगोकर चित्र बनाने के लिए उपयोग किया जाता है।

10. प्राकृतिक रंगों का उपयोग


मधुबनी पेंटिंग में प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाता है। इन रंगों को पेड़ों, फूलों, और अन्य प्राकृतिक स्रोतों से निकाला जाता है।

मधुबनी पेंटिंग की विशेषताएँ

मधुबनी पेंटिंग की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

·         चमकीले रंगों का उपयोग

·         ज्यामितीय आकृतियों और डिजाइनों का उपयोग

·         धार्मिक प्रतीकों का उपयोग

·         पारंपरिक पैटर्न का उपयोग

·         लकड़ी की छड़ी का उपयोग

·         प्राकृतिक रंगों का उपयोग

मधुबनी पेंटिंग एक समृद्ध और विविध कला शैली है जो बिहार की संस्कृति और परंपराओं को दर्शाती है। यह कला शैली भारत के साथ-साथ विदेशों में भी लोकप्रिय है।

(b) त्योहार और पारिवारिक अवसर फर्श डिजाइन बनाने की कला को प्रेरित करते हैं। किन्हीं दो फ्लोर पेंटिंग को A4 आकार की शीट में बनाइए। इन चित्रों को सजाने के लिए अपनी पसंद के रंगों का प्रयोग कीजिए। फ्लोर चित्रों के बारे में कुछ पंक्तियां लिखिए।

उत्तर - पहली फ्लोर पेंटिंग


 

इस फ्लोर पेंटिंग में मैं एक भारतीय त्योहार, दिवाली को चित्रित किया है। पेंटिंग के केंद्र में एक दीपक है, जो दिवाली की रोशनी का प्रतीक है। दीपक के चारों ओर फूलों की आकृतियाँ हैं, जो त्योहार की खुशी और उत्सव का प्रतीक हैं। पेंटिंग को पीले, लाल, और हरे रंगों से सजाया गया है। ये रंग दिवाली के त्योहार से जुड़े हुए हैं।

पंक्तियाँ:

दिवाली की रोशनी से जगमगाती है फर्श की यह पेंटिंग फूलों की आकृतियाँ खुशी का संदेश देती हैं पीले, लाल, और हरे रंगों से सजाया गया है

 

दूसरी फ्लोर पेंटिंग


 

इस फ्लोर पेंटिंग में मैं एक भारतीय पारिवारिक अवसर, शादी को चित्रित किया है। पेंटिंग के केंद्र में एक जोड़ा है, जो हाथ में हाथ लेकर खड़ा है। जोड़े के चारों ओर फूलों और गुब्बारों की आकृतियाँ हैं, जो शादी की खुशी और उत्सव का प्रतीक हैं। पेंटिंग को लाल, गुलाबी, और सफेद रंगों से सजाया गया है। ये रंग शादी के त्योहार से जुड़े हुए हैं।

पंक्तियाँ:

शादी की खुशी और उत्सव फर्श की इस पेंटिंग में बयां है जोड़े की तस्वीर खुशी की बहार है लाल, गुलाबी, और सफेद रंगों से सजाया गया है।