टिप्पणी:
(i) सभी प्रश्नों के उत्तर देने अनिवार्य हैं।प्रत्येक प्रश्न के अंक उसके सामने दिये गए हैं।
(ii) उत्तर पुस्तिका के प्रथम पृष्ठ पर ऊपर की ओर अपना नाम, अनुक्रमांक अध्ययन केन्द्र का नाम और विषय स्पष्ट शब्दों में लिखिए।
1. निम्नलिखित प्रश्नों मे से एक प्र न का उत्तर लगभग 40-60 भाब्दो मे दीजिए।
(क) कबीर कि गुरू-महिमा पर टिप्पणी किजिए तथा आज के सन्दर्भ मे गुरू-ािश्य संबंध पर अपने विचार प्रस्ततु किजिए
उत्तर- कबीर ने गुरु-महिमा के प्रसंग में अनेक साखियाँ भी कही हैं, जिनमें गुरु को ज्ञानका स्रोत और ईश्वर के समान या कभी-कभी ईश्वर से पहले माना गया है। इन साखियों मेंगुरु को ज्ञान का स्रोत कहा गया है। वह ईश्वर के स्वरूप का ज्ञान कराने वाला है।
आज गुरु-शिष्य संबंधे पर नए ढंग सेविचार-विमर्श की आवश्यकता है। गुरु को उच्च थान पर प्रतिष्ठापित करके ही हम शिक्षा के विस्तार, ज्ञान के प्रसार और एक नई ऊर्जावान पीढ़ी का निर्माण करने में सपफल होंगे। इसीलिए कबीर का संदेश हमारे लिए आज भी प्रासंगिक और उपयोगी है।
(ख) निराला कि कविता’ वह तोड़ती पत्थर को पढकर आपने मन मे मजदूर वर्ग के प्रति कौन-कौन से विचार प्रकट होते है। संक्षेप मे प्रस्तुत किजिए।
उत्तर- वह तोड़ती पत्थर ‘सूर्यकांत त्रिपाठी द्वारा रचित एक मजदूर वर्ग क दयनीय द ॥ पर आधरित है इस कविता मे निराला जी ने एक पत्थर तोड़ने वाली मजदुरी के माध्यम से भोशित समाज के जिवन कि दुखो का वर्णन किया है कवि कहता है कि उसने इलाहाबाद के मार्ग पर एक मजदूरनी को पत्थर तोड़ते देखा वह उस पेड़ के निचे बैठकर पत्थर तोड़ रही थी वह छायादार भी नही था। फिर भी विव ाताव। वह वही बैठे पत्थर तोड़ रही थी कवि कहता है कि जैसे -जैसे धूप चढती जा रहि थी, उसी रूप मे गरमी बढती जा रही थी फिर भी वह अपने काम को कर रही थी।
2. निम्नलिखित प्र नो मे से एक प्रश्न न का उत्तर लगभग 40-60 भाब्दो मे दीजिए।
(क) ‘ दो कलाकार’ कहानी मे मानव-सेवा को महत्वपूर्ण क्यो बताया गया है? तर्कसहित उत्तर दिजिए।
उत्तर- मन्नू भंडारी द्वारा लिखित इस कहानी का उद्देश्य समाज-सेवा को कला का दर्जा देना है और कला को सकर्मकता से जोड़ना है। यानी कहानीकार की नज़र में वही कलाकार बड़ा है जो निष्क्रिय होकर कला में ही न डूबा रहे, बल्कि समाज के जरूरतमंदों की सहायता करे। साथ ही वह व्यक्ति सच्चा कलाकार है जो इन जरूरतमंदों की सहायता करता है। जानते हैं ऐसा क्यों है? जी हाँ! सच्ची कला हमें संवेदनशील और करुणावान बनाती है जिसकेकारण ही सामाजिक कार्यों के लिए प्रेरित होते हैं। अतः इस कहानी में चित्रों की अपेक्षा समाज सेवा में कला की सच्ची
संवेदना है। दूसरों की पीड़ा से अनुप्रेरित होने के कारण समाज-सेवा, चित्राकला से अधिक उपयोगी है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए कहानीकार ने ऐसी स्थितियों और घटनाओं का चयन किया है, जिसमें दोनों ही पक्ष हिस्सा लेते हैं. और अपने-अपने कार्यों को श्रेष्ठ होने का दावा करते हैं।
(ख) ‘ जिजीविशा कि विजय’ मे प्रो. रघुवं । कि उन दो वि रेशताओ का उल्लेख किजिए जिनसे आप सर्वाधिक प्रभावित है।
उत्तर- जिजीविशा कि विजय कि दो वि ोशताऐ निम्न है
1. एक व्यक्ति पैर से निरंतर तेजी से लिखता जा रहा है। जब वहाँ विद्यमान अन्य विदवानों से उनका परिचयप्राप्त हुआ तो ज्ञात हुआ कि यह तो वही डॉ. रघुवंश हैं, जिनके विषय में विद्यार्थी जीवन से सुनता आया हूँ
पर यह नहीं मालूम था कि लेखन-कार्य में इतना सक्रिय विद्वान दोनों हाथों से लाचार है।
2. एक बार दिल्ली में ‘मन क्या है’ विषय पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी हुई थी। देश-विदेश केविद्वानों, वैज्ञानिकों ने गंभीर विचार-विमर्श कर मन को परिभाषित करने की चेष्टा की। यहमाना गया कि मन मस्तिष्क नहीं है। वैज्ञानिकों के अनुसार मस्तिष्क शरीर के भीतर एक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण केंद्र है जिसमें बहुत कुछ घटता रहता है।
3. निम्नलिखित प्र नो मे से एक प्र न का उत्तर लगभग 40-60 भाब्दो मे दीजिए।
(क) कुटज’ कि किन्ही दो वि ोशताओ को अपने भाब्दो मे प्रस्तुत किजिए।
उत्तर- कुटज कहानी के दो वि ोशताए निम्न है।10 यह जो मेरे सामने कुटज का लहराता पौध खड़ा है, वह नाम और रूप दोनों में अपनी अपराजेय जीवनी
शक्ति घोषणा कर रहा है। इसीलिए यह इतना आकर्षक है। नाम है कि हजारों वर्ष से जीता चला जा रहा है। कितने नाम आए और गए। दुनिया उनको भूल गई, वे दुनिया को भूल गए। मगर कुटज है। 20 मनुष्य को दयनीय कृपण बना देता है। कार्पण्य दोष से जिसका स्वभाव उपहत हो गया है, उसकी दृष्टिम्लान हो जाती है, वह स्पष्ट नहीं देख पाता। वह स्वार्थ भी नहीं समझ पाता, परमार्थ तो दूर की बात है। दुःख और सुख तो मन के विकल्प हैं। सुखी वह है जिसका मन वश में है, दुःखी वह है जिसका मन परवश है। परवश होने का अर्थ है खुशामद करना, दाँत निपोरना, चाटुकारिता, हाँ हजूरी। जिसका मन अपने वश में नहीं है।
(ख) ‘सतपुड़ा के घने जंगल’ कविता के आधार पर प्रकृति कि भाोभा का वर्णन किजिए।
उत्तर-सतपुड़ा के घने जंगल कविता पाठक को प्रकृति की ऐसी अकल्पनीय दुनिया में ले जाती है जो मनोरम सौंदर्य और आश्चर्य से भरी है। प्राणदायिनी नदियाँ इन्हीं जंगलों और पहाड़ों से आकार ग्रहण करती हैं। ये नदी, निर्झर और नाले जंगल को खूबसूरत बनाते हैं। सारे पर्यटन केंद्र इन्हीं जल धराओं के आसपास होते हैं। परिंदों की चहचहाहट और नदियों की उदगम भूमि भी इन्हीं जंगलों में है। अरण्य अभयारण्य और पक्षी बिहारों के एक-दूसरे के सरोकार होते हैं। रात की स्वच्छ चाँदनी की कल्पना में अठखेलियाँ करने लगता है। नए पत्ते और हरित दूर्वा कविता के अंत में एक सम्मोहनकारी और मनोरम वातावरण की सृष्टि करते हैं। ऐसे लतायुक्त जंगल से हम विदा लेते हुए कृतज्ञता से भर उठते हैं। यह एक आरण्यक कविता है।
4. निम्नालाखत प्र ना क उत्तर लगभग 100-150 भाब्दा म दाजिए।
(क) पठित पाठ के आधार पर जय शंकर प्रसाद कि राष्ट्रीय चेतना का उल्लेख किजिए।
उत्तर- जयशंकर प्रसाद छायावादी युग के श्रेष्ठ कवि है। इनकी कविताओं में वैयक्तिक अनुभूति, संस्कृति और राष्ट्र-प्रेम की अभिव्यक्ति प्रभावशाली ढंग से हुई है। इसलिए हिंदी कविता के इस युग को ‘नवजागरण का युग कहा जाता है। इनके चंद्रगुप्त’ नाटक की गिनती हिंदी के श्रेष्ठतम नाटकों में होती है।
जिस गीत ‘हिमाद्रि तुंग श्रृंग से…. को आप पढ़ने जा रहे है यह कविता जयशंकर प्रसाद के उदात्त राष्ट्रप्रेम का एक उदाहरण है। इस कविता के माध्यम से व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के लिए स्वतंत्राता के महत्त्व को स्पष्ट किया गया है। यह हिंदी नवजागरण की प्रतिनिधि रचनाओं में से एक है। कविता की पंक्तियों से यह स्पष्ट है कि स्वतंत्राता का अपना ही एक प्रकाश होता है जिससे समाज और देश को एक नई ऊर्जा सही दिशा प्राप्त होती है।
यह कविता जयशंकर प्रसाद के उदात्त राष्ट्रप्रेम का एक उदाहरण है। इस कविता के माध्यम से व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के लिए स्वतंत्राता के महत्त्व को स्पष्ट किया गया है। यह हिंदी नवजागरण की प्रतिनिधि रचनाओं में से एक है। कविता की पंक्तियों से यह स्पष्ट है कि स्वतंत्राता का अपना ही एक प्रकाश होता है जिससे समाज और देश को एक नई ऊर्जा सही दिशा प्राप्त होती है। उस युग में भारतीयों के लिए पराधिनता से बड़ा कोई दुःख नहीं था। कवि प्रसाद ने समूचे देश को पराधिनता से उबरने का संदेश देने का प्रयत्न किया है।
(ख) यक्ष-युधिश्ठिर संवाद में अनेक वा ििनक प्र नो के उत्तर दिये गये है किन्ही चार का उल्लेख अपने भाब्दो मे किजिए।
उत्तर- यक्ष-युविश्ठिर संवाद के चार प्र नो के उत्तर निम्न है।
1. मनुष्य इस संसार में बार-बार जन्म क्यों लेता है
उत्तर-मनुष्य अपने प्रत्येक जन्म में संसार से लगाव रखता है, उसे मरते समय तक संसार की वस्तुओं से लगाव रहता है। जीवन में अनेक इच्छाओं के साथ जीता है और अनेक इच्छाआ को अपने मन में लिए मृत्यु को प्राप्त होता है जीवन में रहते हुए अपनी इच्छाओं को पूरकरने के लिए अच्छे-बुरे कर्म करता है। अतृप्त इच्छाओं, जीवन में किये गए कर्म तथा संसार के प्रति लगाव के कारण ही मनुष्य बार-बार जन्म लेता है।
2.जीवन को बेहतर बनाने में सबसे अधिक सहायक कौन है?
उत्तर- इस मंच पर सभी जीव अपनी-अपनी भूमिका निभाने में व्यस्त हैं। परिस्थितियों में मनुष्य का साथ उसका धैर्य देता है। जीवन में अनेक प्रकार की कठिनाइयाँ आती है। इन कठिनाइयों में जो धैर्यवान होता है वह सहनशील एवं स्थिर रहता है। समय को समझते हुए अच्छे समय की प्रतीक्षा करने वाला मनुष्य ही जीवन में सफल होता है।
3.जन्म-मरण के बंधन से मुक्त कैसे रहा जा सकता है।
उत्तर- शरीर नष्ट होने के बाद आत्मा एक नया शरीर धरण कर लेता है। इस आत्मा के स्वरूप को जानने वाला ही जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो सकता है। वासना का अर्थ लगाव से है। मनुष्य अपने जन्म के साथ विभिन्न भावनाओं और लगाव के साथ जीता है। जिन भावनाओं के साथ मनुष्य मरता है
40 सच्चा प्रेम क्या है, मनुष्य सभी से प्रेम क्यों नहीं करता?
उत्तर- ससार की सभी वस्तुओं से प्रेम करना सच्चा प्रेम है। लेकिन मनुष्य संसार के सभी प्राणियों से प्रेम नहीं कर पाता है। उसका दायरा सीमित हो जाता है। मनुष्य सभी में अपने आप को नहीं देख पाता। सांसारिक आकर्षणों से मुक्त नहीं हो पाता। जहाँ उसका स्वार्थ पूरा होता है और जब तक होता है, वह तभी तक वह प्रेम करता है, इसलिए वह सभी से प्रेम नहीं करता।
5. निम्नलिखित प्र नो मे से एक प न का उत्तर लगभग 100-150 भाब्दो मे दीजिए।
(क) अनुच्छेद लेखन कि प्रकिया का उल्लेख सोदाहरण किजिए।
उत्तर- अनुच्छेद लेखन की प्रक्रिया से हमारा आशय उस क्रियाविधि से है जिसके ज्ञान के आधर पर हम किसी विषय पर सुव्यवस्थित अनुच्छेद लिखना सीख सकते हैं। हम किसी दिए गए विषय पर अपनी निजी अनुभूति, अर्जित ज्ञान और सशक्त भाषा के सहयोग से अनुच्छेद लेखन करते हैं। एक अच्छा अनुच्छेद लिखने के लिए हमें कुछ बातों का ध्यान रखना अत्यन्त आवश्यक है।
विषय की रूपरेखा- दिए गए विषय पर थोड़ा सोचने-विचारने के उपरांत उसकेआवश्यक बिन्दुओं और आयामों की एक रूपरेखा तैयार कर लेनी चाहिए जिससे वषय को सुव्यवस्थित रूप से अभिव्यक्त किया जा सके।
शैली- विषय को प्रस्तुत करने के लिए उपयुक्त शैली अथवा पति का चयन किया जाना अत्यन्त आवश्यक है। अपनी रुचि और विषय के अनुरूप शैली के प्रयोग से अनुच्छेद में रमणीयता आ जाती है।
विषयगत चिंतन- जिस विषय पर हमें अनुच्छेद लिखने के लिए कहा जाए उस विषय पर थोड़ा चिंतन-मनन आवश्यक है। मूल भाव को भली-भाँति स्पष्ट करने के लिए दिए गए अथवा चुने गए विषय पर थोड़ा विचार करना नितांत जरूरी है।
(ख) सभा या मंच संचालन के समय ध्यान रखने योग्य बाते मे से किन्ही चार का वर्णन किजिए।
उत्तर- किसी सभा अथवा मंच का संचालन करते समय अनेक चुनौतियों से गुजरना पड़ता है। सबसे बड़ी चुनौती तो यही है कि दर्शकों अथवा श्रोताओं को कैसे बाँधे रखना है। सभा या मंच संचालन के समय ध्यान रखने योग्य बाते निम्न है।
1. विषय की जानकारी सभा या मंच संचालन के लिए जो बात सबसे जरूरी है, वह यह है कि सभा या कार्यक्रम जिस विषय पर आधरित है-उस विषय का हमें संपूर्ण ज्ञान हो। जिससे हम उस विषय के बारे में सही और प्रामाणिक जानकारी दे सकें, नवीनतम जानकारी दे सके
2. विषय की जानकारी- सभा या मंच संचालन के लिए जो बात सबसे जरूरी है, वह यह है कि सभा या कार्यक्रम जिस विषय पर आधरित है-उस विषय का हमें संपूर्ण ज्ञान हो। जिससे हम उस विषय के बारे में सही और प्रामाणिक जानकारी दे सकें, नवीनतम जानकारी दे
3. भाषा पर अधिकार- भाषा पर अधिकार का मतलब यह है कि हम विषय के अनुसार शब्दों का उचित चयन कर सकें, हमारीवाक्य-संरचना भी विषय के अनुरूप हो और हम सभागार के माहौल, दर्शकों अथवा श्रोताओं की मनः स्थिति और परिस्थिति के अनुसार अपनी बात को कहने के तरीके को बदल सकें। इसका अर्थ यह है कि एक ही बात को कई तरह से कहा जा सकता है और अर्थ वही रहे जो हम कहना चाहते हैं। उदाहरणस्वरूप आइए, अब हम सुनते हैं एक और गीत जिसके बोल हैं कदम, कदम
बढ़ाए जा, खुशा के गात गाए जा, ये जिदगा है काम का तू काम पर लुटाए जा!
4. अन्य जरूरी बाते मंच संचालन से पहले ही माइक पर अपनी आवाज को जाँच लीजिए कि क्या आवाज को बढ़ाने / घटाने की जरूरत है साथ ही दर्शकों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करता है। इतना ही नहीं, हम कम शब्दों में अपनी पूरी बात कह सकते हैं, वह भी प्रभावी ढंग से। मंच संचालक का व्यक्तित्व, उसकी माषा, उसके कहने का अंदाज आदि कार्यक्रम की सपफलता को तय करते हैं।
6. नीचे दी गई परियोतना मे से कोई एक परियोजना तैयार किजिए।
(क) हिन्दी साहित्य के इतिहास के चार काल खंडो का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत कीजिए तथा प्रमुख वि ोशताओ कि सूची को चार्ट द्वारा प्रस्तुत किजिए
उत्तर- हिंदी साहित्य को चार भागों में बाँटा गया है-
आदिकाल-(वीरगाथाकाल) 1000-1400 ई.
भक्तिकाल (पूर्व मध्यकाल) 1400-1700
रीतिकाल (उत्तर मध्यकाल) 1700-1900
आधुनिक काल। (नई कविता) 1900- अबतक
आदिकाल आदिकाल को विरगाथा भी कहा जाता है।
आदिकाल के प्रमुख वि पेशता
वीर रस कि प्रधानता
प्राकृतिक का चित्रण
ऐतिहासिक घटनाओं का चित्रण
भक्तिकाल भक्तिकाल हिन्दी साहित्य के स्वर्णिक का काल माना जाता है। भक्तिकाल को दो भागो में बाँटा गया है।
1. सगुण धारा
2. निर्गुण धारा
भक्तिकाल के प्रमुख वि शिता
रहस्यवादी कविता का प्रारंभ
सौन्दार्य का चित्रण
काव्य भौलियों का प्रयोग
रीतिकाल- रीतिकाल काव्य को तीन धाराओं में विभाजित किया जा सकता है।
रीतिबध्द काव्य
रीतिमुक्त काव्य
रीतिसिध्द काव्य
रीतिकाल के प्रमुख वि ोशता
व्रज भाशा अवधी का प्रयोग
वीर एव श्रृंगार रस कि प्रधानता
प्राकृतिक का चित्रण
आधुनिक काल- आधुनिक काल के इस काल में हिन्दी का चहुमुखी विकास हुओं।
आधुनिक काल के प्रमुख वि ोशता
समाजिक चेतना का विकास
हास्य व्यंग्य
अंग्रजी शिक्षा का विरोध
(ख) ‘भारत में खेलकूद कि वर्तमान स्थिति विशय पर फीचर तैयार किजिए। साथ ही चार्ट के माध्यम से प्रमुख खेलो का सचित्र प्रस्तुत किजिए।
उत्तर- ‘एक साल पहले तक जो लड़कियाँ डान्स फ़्लोर पर थिरकते हुए पाई गई थीं, उनके कदम आज टेनिस कोर्ट की ओर बढ़ने लगे हैं। जो लड़कियां ऐश्वर्या राय बनने का सपना संजोया करती थीं उनमें सानिया मिर्जा बनने की होड़ मची है। टेनिस की सनसनी सानिया का जादू शहर के टीनएजर्स के सिर चढ़कर बोल रहा है। वे पूरी तरह सानिया के रंग में डूबी नजर आ रही हैं। स्कूल से लेकर कॉलेज तक की छात्राओं पर टेनिस का बुखार चढ़ चुका है। कॉलेज की जिन छात्राओं में बैटिंग मैस्ट्रो सचिन तेन्दुलकर के खेल की चर्चा होती थी वे आज सानिया का नाम लेते नहीं अघातीं। होस्टल के कमरों की जिन दीवारों पर अन्ना कुर्निकोआ, मारिया शारापोवा या डेविड बेकहम के पोस्टर हुआ करते थे, वहाँ आज सानिया की तसवीरें टंग चुकी हैं।
भारत के प्रमुख खेल
कबड्डी
क्रिकेट
कुश्ती
शतरंज