टिप्पणीः
(i) सभी प्रश्न अनिवार्य हैं। प्रत्येक प्रश्न के लिए आवंटित अंक प्रश्नों के साथ दिए गए हैं।
(ii) उत्तर पुस्तिका के पहले पृष्ठ पर ऊपर की ओर अपना नाम, अनुकमांक, अध्यन केन्द्र का नाम और विषय स्पष्ट शब्दो में लिखिए।
1. किसी
एक
प्रश्न
का
उत्तर
40-60 शब्दों
में
लिखिए–
(क)
सामवेद में दिए गए
गान रूपी नाट्य तत्त्वों
की एक सूची बनाइये।
उत्तर– सामवेद में दिए गए गान रूपी नाट्य तत्त्वों
की एक सूची:
साम – इसमें वैदिक मंत्रों का गाया जाना.
उद्गातृ – गायक या उद्गाता जो मंत्रों को गाता
था.
स्वर – मन्त्रों की मेलोडी और स्वरों का महत्वपूर्ण
भाग.
ताल – गान की छंदों और ताल मानों का महत्व.
विभाग – सामान्य और विशेष भवन्ति के मंत्रों
का विभाजन।
ये तत्त्व सामवेद
में वेदिक संगीत और नृत्य के महत्वपूर्ण हिस्से थे और नृत्यरूपी आदिकवि के लिए अद्वितीय
थे।
(ख)
शूद्रक की नाट्यशैली पर
एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर- शूद्रक की नाट्यशैली विशेष रूप से भारतीय
संगीत और नृत्य के इतिहास में महत्वपूर्ण है। उन्होंने ‘मृच्छकटिका’ नाटक के माध्यम
से भारतीय नृत्य और संगीत को उत्कृष्टता दिलाने का प्रयास किया। उनके कृत्रिम नाट्यपद्धतियाँ,
राग-ताल के सम्बंध में उनकी विशेष अध्ययन ने उन्हें एक अद्वितीय स्थान दिलाया है। शूद्रक
की संगीत और नृत्य शैली ने उन्हें भारतीय कला के क्षेत्र में एक महान स्थान दिलाया
है।
2. किसी
एक
प्रश्न
का
उत्तर
40-60 शब्दों
में
लिखिए–
(क)
आधिकारिक कथावस्तु को उदाहरण देते
हुए समझाइए ।
उत्तर- आधिकारिक कथावस्तु किसी सरकारी या संगठनित
संस्था द्वारा मान्यता प्राप्त किया जाने वाला सूचना, निर्देश, आदेश, नियम या किसी
अन्य प्रकार की विधिगत घोषणा होता है। यह आमतौर पर विभिन्न अधिकारिक प्रमाणों के साथ
प्रस्तुत किया जाता है,
जैसे कि सरकारी नोटिफिकेशन, सरकारी आदेश, नियम
पुस्तिकाएँ, या अन्य अधिकारिक दस्तावेज। इसका उदाहरण के रूप में सरकार के बजट या कानूनी
अधिनियम दिया जा सकता है।
(ख)
पाँच कार्यावस्थाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर– नाट्यकला में पाँच कार्यावस्थाएं होती हैं:
1. समारंभ (आरम्भ): नाटक की शुरुआती घटनाओं को संबोधित करने की क्रिया। यहाँ आरम्भिक परिस्थितियों को प्रस्तुत किया जाता है ताकि कार्यावस्था का परिचय हो सके।
2. विकसित (विकसित): नृत्य और भाषण के माध्यम से कहानी को बढ़ावा देने की क्रिया। इसमें किरदारों के व्यक्तित्वों और उनके बीच संवाद का विकास होता है।
3. वर्तमान (विवेक): कहानी के मुख्य सन्दर्भ में घटित हो रहे घटनाओं का वर्णन करने की क्रिया। यहाँ कथा की मुख्य टेंशन या रोमांच पैदा होता है।
4. विपुल (विस्तार): कहानी की महत्वपूर्ण घटनाओं का विस्तृत वर्णन या समापन करने की क्रिया। यहाँ उद्घाटन को अंत में ले जाते हैं और सम्पूर्ण कहानी का निर्माण होता है।
5. संस्करण (संस्कार): नाटक की समापनी क्रिया। यहाँ घटित हो रही घटनाओं को समाप्त कर दिया जाता है और आखिरी समारंभ प्रस्तुत किया जाता है।
3. किसी
एक
प्रश्न
का
उत्तर
40-60 शब्दों
में
लिखिए–
(क) नाट्य धर्म की दृष्टि
से कथावस्तु के भेदों को
लिखिए।
उत्तर– नाट्य धर्म की दृष्टि से कथावस्तु के भेद निम्नलिखित हैं:
· विदृश्य कथा (काव्य): इसमें भावनाओं की विस्तृत वर्णन होती है और अधिकांश दृश्यों का वर्णन और विवरण किया जाता है।
· दृश्यकथा (नाटक): इसमें कार्यावस्था की विशिष्ट घटनाओं का विवरण और उनके बीच संवाद होता है, जिससे कहानी की प्रक्रिया स्पष्ट होती है।
· वाचिक (ड्रामाटिक): इसमें मुख्य धाराओं के माध्यम से कहानी को उद्दीपन दिया जाता है, और इसमें संवादों की अहमियत बढ़ती है।
· गीतिक (गीत): इसमें संवादों को गाने की रूप में प्रस्तुत किया जाता है और भावनाओं को संगीत के माध्यम से व्यक्त किया जाता है।
· अनुप्रेक्षाक (नृत्य): इसमें शारीरिक अभिव्यक्ति के माध्यम से भावनाओं को प्रस्तुत किया जाता है, जो अक्सर नृत्य रूप में होती है।
(ख)
प्रतिमानाटक के पाँचवे अंक
का संक्षिप्त में सार लिखिए।
उत्तर- प्रतिमानाटक के
पाँचवे
अंक
का
संक्षिप्त
में
सार
‘प्रतिमानाटक’
एक प्रकार की नाट्यशास्त्रीय कृति है जिसमें नायक नायिका का प्रेम-विवाहित जीवन का
वर्णन होता है। इसमें उनके विचार, भावनाएँ, भ्रम, दुःख-सुख आदि का विस्तारित वर्णन
होता है।
प्रतिमानाटक
में संवादों का प्रमुख भूमिका होती है, जिनमें वाचिक और अनुवाचिक रूप से भावनाएँ व्यक्त
की जाती हैं। यह नाटक का एक अहम विधान है जो भारतीय साहित्य और संस्कृति का अभिन्न
हिस्सा है।
4. किसी
एक
प्रश्न
का
उत्तर
100-150 शब्दों में लिखिए–
(क)
प्रतिमानाटक के किन्ही दो
पात्रों का चरित्र चित्रण
लिखिए।
उत्तर- प्रतिमानाटक के किन्ही दो पात्रों का चरित्र चित्रण-
1. नायक (प्रमुख पात्र): नायक एक प्रमुख पात्र होता है जिसे प्रतिमानाटक में मुख्य विचारक कहा जाता है। नायक आमतौर पर प्रेमी होता है और नायिका से प्रेम करता है। उसका चरित्र गहरे भावनाओं और उत्कृष्ट कौशल से भरपूर होता है। वह नाटक के दौरान अपनी प्रेमिका के साथ भिन्न-भिन्न रस और भावनाओं का व्यक्ति करता है।
2. नायिका (प्रमुख पात्री): नायिका प्रतिमानाटक की मुख्य पात्री होती है और उसकी प्रेमिका की भूमिका होती है। वह अकस्मात् नायक से मिलती है और उसके प्रेम को स्वीकार करती है। उसका चरित्र प्रेम, विश्वास, आदर्शता, और साहस का प्रतीक होता है। नायिका नाटक के दौरान अपने भावनाओं का सफलता पूर्वक व्यक्ति करती है और दर्शकों को उसकी प्रेम की गहरी भावनाओं का अनुभव कराती है।
(ख)
प्रतिमानाटक की रंग संभावनाओं
का विस्तार से उल्लेख कीजिए।
उत्तर– प्रतिमानाटक की रंग संभावनाएँ:
1. भावनाओं का व्यक्ति: प्रतिमानाटक में रंगों का उपयोग भावनाओं को व्यक्त करने के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए, उत्साह और प्रेम को रंग जैसे लाल और गुलाबी से दिखाया जाता है।
2. सांस्कृतिक और सामाजिक परिवेश: रंगों का चयन सांस्कृतिक और सामाजिक परिवेश के आधार पर किया जाता है। विभिन्न समुदायों और समाजों में विभिन्न रंग प्राथमिकता दिए जाते हैं।
3. कार्यावस्थाओं और विचारों का प्रकटीकरण: रंगों का विविधता उनके आवश्यकता और विचारों के आधार पर होती है। उदाहरण के लिए, खुशी और उत्साह की भावना को उत्तेजनादायक रंगों से प्रकट किया जाता है।
4. युगियता और विरासत: प्रतिमानाटक की रंग संभावनाएँ विशेष युग और समय के अनुसार अलग हो सकती हैं। विरासत और ऐतिहासिक कार्यावस्थाओं को उद्घाटित करने के लिए विशेष रंग चयन किया जाता है।
5. कला और अभिव्यक्ति: रंगों का उपयोग कला और अभिव्यक्ति के साधना में किया जाता है। रंगों के सही विनिर्माण से कला का व्यक्तिगत स्वरूप उजागर होता है।
5. किसी
एक
प्रश्न
का
उत्तर
100-150 शब्दों में लिखिए –
(क) नागानंद नाटक के रचयिता
श्री हर्षवर्धन का सामान्य परिचय
लिखिए।
उत्तर– नागानंद
नाटक के रचयिता श्री हर्षवर्धन का सामान्य परिचय:
श्री हर्षवर्धन
एक प्रमुख भारतीय नाटककार और लेखक थे। उन्होंने नागानंद नाटक का रचना किया, जो एक प्रमुख
संस्कृत नाटक है और नाटक कला में उनके महत्वपूर्ण योगदान की प्रतिष्ठा दिलाई।
उन्होंने भारतीय साहित्य के क्षेत्र में भी अपने लेखन कौशल का प्रमुख योगदान दिया। हर्षवर्धन की रचनाएँ भारतीय साहित्य और संस्कृति को गौरवशाली रूप में प्रकट करती हैं और उनके कृतियाँ आज भी महत्वपूर्ण हैं।
(ख)
आधुनिक रंगमंच का विस्तार से
उल्लेख कीजिए ।
उत्तर- आधुनिक रंगमंच नाटक कला का एक महत्वपूर्ण
हिस्सा है जिसमें विभिन्न रंगमंच यातायातों को दर्शाने के लिए निर्मित किया जाता है।
यह आधुनिक तकनीकों का और स्क्रीन ग्राफिक्स का सही समावेशन है जो दर्शकों को वास्तविकता
का एक अनुभव कराता है।
यह उदाहरण के
रूप में इंटरएक्टिव गेम्स, हाल की फिल्मों और वास्तविकता शोज पर आधारित अद्वितीय रंगमंच
कार्यक्रमों शामिल हो सकता है। आधुनिक रंगमंच भारत और विदेशों में शिक्षा, मनोरंजन,
और सांस्कृतिक निर्माण का महत्वपूर्ण साधना बन गया है। इसके जरिए कला, विज्ञान, और
तकनीक को जनता के सामने प्रस्तुत किया जाता है, जो नई और अनूठी अनुभवों को उत्पन्न
करता है।
6. नीचे
दिए
गए
किसी
एक
विषय
पर
परियोजना
रूप
में
विवरण
दीजिए।
(क)
नागानंद नाटक के सभी
अंकों की एक सूची
बनाकर प्रत्येक अंक का सार
लिखिए।
उत्तर– ‘नागानंद नाटक’ एक महत्वपूर्ण संस्कृत नाटक है जिसे श्रीहर्षवर्धन ने रचा था। यह नाटक संस्कृत साहित्य में महत्वपूर्ण है और इसमें कई अंक होते हैं:
1. उपकारिका: नाटक का प्रस्तावना अंक, जो किसी गथा की कथा को आगे बढ़ाने के लिए होता है।
2. प्रसंगः: नाटक का मुख्य विषय अंक, जिस पर कहानी आधारित होती है।
3. विपक्षः: नाटक में प्रमुख प्रतिकृति की प्रतिकृति, जो किसी प्रकार के विपरीत संघर्ष का प्रतिनिधित्व करती है।
4. नायकः: कथा का मुख्य पात्र, जो कथा को आगे बढ़ाता है।
5. नायिका: नायक के पार्टनर, जो कथा में भूमिका निभाता है।
6. प्रसिद्धि: नाटक का विचार और उसकी संवादों की कथा।
7. प्रसंगविवेचनम्: नाटक की कथा में घटित होने वाले घटनाओं का विशेष विवरण।
8. प्राप्तिः: कथा का संवाद, जिसमें कथा का मुख्य सन्देश प्रस्तुत होता है।
9. पर्यावसानम्: नाटक की समाप्ति अंक, जो कथा को संगठित रूप में समाप्त करता है।
10. प्रशंसा: नाटक की सराहना और प्रशंसा करने वाले अंक, जिसमें पुनरावलोकन और विचार व्यक्त किए जाते हैं।
11. प्रसंगोद्गमः: नाटक की कथा का प्रारंभिक अंक, जिसमें कथा की प्रारंभिक स्थिति व्यक्त की जाती है।
12. प्रस्तावना: नाटक का प्रारंभिक अंक, जिसमें मुख्य कथा का आवेशन किया जाता है।
13. प्रतिपत्तिः: नाटक की समाप्ति अंक, जिसमें समस्या का समाधान या कथा का समापन प्रस्तुत किया जाता है।
14. प्रसंगकर्ता: नाटक का कथा वाचक अंक, जिसमें कथा को पुनरावलोकन किया जाता है।
15. प्रस्तावकः: नाटक की आधिकारिक विधायक, जो कथा की परम्परा और नियमों को स्वीकार करता है।
इन सभी अंकों का संयोजन ‘नागानंद नाटक’ की कथा को समृद्ध करता है और एक पूर्ण नृत्य और नाट्य अनुभव प्रदान करता है।
(ख)
रंगमंच के विभिन्न प्रकारों
की सूची बनाते हुए
उन्हें विस्तार से समझाइए ।
उत्तर– रंगमंच कई प्रकार के होते हैं, जो विभिन्न
प्रकार की प्रस्तुतियों और प्रदर्शनों के लिए उपयोग में आते हैं:
नाट्यगृह (Auditorium): यह एक विशेष रंगमंच होता है जो नाटक,
नृत्य, और अन्य प्रदर्शनों के लिए डिज़ाइन किया जाता है. इसमें उपस्थित दर्शकों के
लिए आरामदायक सीटें और ध्वनि और प्रकाश की अच्छी व्यवस्था होती है.
खुला आंगण (Open-air Stage): यह रंगमंच आसमान के नीचे होता है और
बाहरी प्रदर्शनों के लिए उपयोग में आता है, जैसे कि गाँवों में लोक नृत्य और खेल के
आयोजनों के लिए.
थिएटर: थिएटर रंगमंच छोटे और गहरे नाटक और प्रदर्शनों
के लिए डिज़ाइन किए जाते हैं, जहाँ कला के प्रदर्शनों को दर्शकों के सामने प्रस्तुत
किया जाता है.
उपस्थिति: यह एक अलग तरह का रंगमंच होता है, जो
सामुदायिक या शिक्षा कार्यक्रमों के लिए उपयोग में आता है, जहाँ दर्शक और कलाकार साथ
होते हैं.
सजावटी रंगमंच: इस प्रकार के रंगमंच प्रदर्शन की सजावट
और विशेष प्रभावों के लिए डिज़ाइन किए जाते हैं, जैसे कि नृत्य और संगीत के प्रदर्शनों
के लिए.
इन विभिन्न
प्रकार के रंगमंचों का उपयोग विभिन्न प्रकार के कला और मनोरंजन के प्रदर्शनों के लिए
किया जाता है, जो दर्शकों को मनोरंजन और सांस्कृतिक अनुभव प्रदान करते हैं.